सहयोगी दलों से लेकर विपक्ष है हमलावर, ओबीसी के युवाओं में गहरी नाराजगी
लखनऊ, 13 फरवरी
पिछले एक सप्ताह के दौरान आरक्षण को लेकर दो बड़े फैसले आए हैं। एक उच्चतम न्यायालय का फैसला है और दूसरा उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का। लेकिन ताज्जुब की बात है कि इस गंभीर मुद्दे पर सत्ता पक्ष के किसी भी ओबीसी नेता की प्रतिक्रिया नहीं आई। ऐसा लगता है कि बीजेपी के ओबीसी नेताओं और उनके रिश्तेदारों के बच्चों को आरक्षण की जरूरत नहीं है। इन दिनों विशेषकर उत्तर प्रदेश के ओबीसी युवाओं में कुछ इसी तरह की चर्चा है।
पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और राज्य आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। उधर, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के फैसला के तहत यदि कोई आरक्षित वर्ग का अभ्यार्थी आरक्षण के तहत आवेदन करता है तो अधिक नंबर लाने के बावजूद उसका चयन आरक्षित वर्ग के अंतर्गत ही होगा, उसे अनारक्षित वर्ग में शामिल नहीं किया जाएगा।
इन दो फैसलों से पूरे देश में आरक्षण और उसके भविष्य को लेकर चर्चा तेज हो गई है। सहयोगी दलों से लेकर विपक्ष तक हमलावर है।हालांकि उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी पर केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने लोकसभा में कहा कि एनडीए सरकार अनुसूचित जाति-जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए समर्पित और प्रतिबद्ध है। इस विषय पर उच्च स्तरीय विचार के बाद भारत सरकार समुचित कदम उठाएगी।
सत्ता पक्ष के ओबीसी नेताओं की खामोशी:
वोट बैंक की राजनीति के लिए बीजेपी ने स्वतंत्रदेव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष, केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री, स्वामी प्रसाद मौर्य को श्रम मंत्री, मुकुट बिहारी वर्मा को सहकारिता मंत्री, दारा सिंह चौहान को वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाया है। लेकिन ये सभी नेता इन दिनों आरक्षण को लेकर खामोश हैं। इन नेताओं की चुप्पी पर ओबीसी के युवा वर्ग में खासा नाराजगी है।
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सहयोगी दलों ने उठायी आवाज:
खास बात यह है कि आरक्षण मामले में अध्यादेश लाने को लेकर अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, जेडीयू के सांसद राजीव रंजन सिंह, एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान जैसे युवा नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया की और लोकसभा में प्रमुखता से आवाज उठायी। खास बात यह है कि प्रमोशन में आरक्षण को लेकर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने एससी-एसटी वर्ग के सभी सांसदों को अपने आवास पर आमंत्रित किया और उनके साथ बैठक की। सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर इस मामले में लगातार योगी सरकार को घेर रहे हैं।
विपक्ष भी हमलावर:
आरक्षण को लेकर विपक्ष हमलावर है। कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा तक इस मामले में कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुके हैं।
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क्या कहते हैं ओबीसी के युवा:
महाराजगंज निवासी सामाजिक चिंतक एवं लखनऊ हाईकोर्ट में अधिवक्ता नंद किशोर पटेल कहते हैं कि यह बहुत ही दु:ख की बात है कि बीजेपी जब भी किसी ओबीसी वर्ग के नेता को कोई पद देती है तो उसकी जाति का खूब प्रचार करती है, लेकिन ये ओबीसी नेता गद्दी पाते ही भूल जाते हैं कि वो आरक्षित वर्ग से हैं। इनकी खामोशी से आज ओबीसी के युवाओं का भविष्य अधर में लटका है।
बांदा निवासी छात्र एवं विचारक डॉ.सुनील पटेल शास्त्री कहते हैं कि यूपीपीएससी के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव ने अधिक अंक लाने वाले अभ्यार्थियों को सामान्य श्रेणी के तहत शामिल करने की कोशिश की थी, लेकिन सवर्ण वोट बैंक के डर से अखिलेश यादव ने इस मामले से हाथ खींच लिया था। सुनील शास्त्री कहते हैं कि ओबीसी नेता बहुत कम ऐसे हैं जो रीढ़ रखते हैं और अपने समाज के प्रति चिंतित रहते हैं। ये नेता समाज की बजाय अपने निजी हितों को ज्यादा तरजीह देते हैं। बीजेपी के ओबीसी नेताओं की चुप्पी से ओबीसी छात्रों में गहरी नाराजगी है।
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गोरखपुर निवासी सामाजिक चिंतक एवं स्तम्भकार अजय कुशवाहा कहते हैं कि बीजेपी और आरएसएस शुरू से ही मनुवादी व्यवस्था की पोषक रही हैं। इन्हें सामाजिक सरोकार से कोई लेना-देना नहीं है। इनमें सवर्ण समाज का ही वर्चस्व है और सवर्णों को खुश रखने के लिए बीजेपी के ओबीसी सांसद आरक्षण के मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं।