आजमगढ़/ लखनऊ, 22 जनवरी
1857 की क्रांति Revolution of 1857 में आजमगढ़ का अतरौलिया रियासत भी क्रांति का एक प्रमुख केंद्र रहा। अंग्रेजों के खिलाफ उग्र क्रांति से नाराज ब्रिटानिया हुकूमत ने अतरौलिया के किले को ही जला दिया, वहां की प्रजा पर जुल्म किया और आजमगढ़ के मदुरी बाग में अंग्रेजों में क्रांतिकारियों के खिलाफ केमिकल अटैक भी किया, जिसकी वजह से वहां की अधिकांश प्रजा (पटेल समाज) आजमगढ़ में सरयू नदी के किनारे दियारा में शरण ली। आज आजमगढ़ मंडल में पटेल समाज की संख्या लगभग 3 लाख से ज्यादा है, लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी आजमगढ़ मंडल का पटेल समाज राजनैतिक व आर्थिक तौर से मजबूत नहीं हो पाया है। ऐसा लगता है कि यहां के पटेलों को राजनीतिक पार्टियां केवल वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करती हैं।
आजमगढ़ मंडल में आजमगढ़, मऊ व बलिया जनपद आते हैं। यहां पर लगभग 3 लाख से ज्यादा पटेल समाज (कुर्मी ) निवास करता है। लेकिन राजनैतिक तौर पर यहां पटेल समाज शून्य है। आजमगढ़ में 21 विधानसभा स्थित हैं। आजमगढ़ मंडल की सगड़ी और मधुबन में पटेलों की संख्या सर्वाधिक है। इसके अलावा आजमगढ़ सदर, अतरौलिया, बलिया में बेल्थरा रोड, बांसडीह विधानसभा क्षेत्र में पटेल एकजुट हो जाएं तो किसी भी प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त हैं।
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लेकिन बरखूराम वर्मा, अभय सिंह पटेल और डॉ.एचएन पटेल को छोड़कर यहां से अब तक कोई विधायक नहीं बना। हालांकि बरखूराम वर्मा आजमगढ़ के अतरौलिया क्षेत्र के निवासी थे, लेकिन आजमगढ़ के सगड़ी विधानसभा क्षेत्र से उनके विधायक चुने जाने और बसपा सरकार में विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने से यहां के पटेलों को कुछ समय के लिए मजबूती मिली। लेकिन बाद में उन्हें बसपा से निकाले जाने एवं उनके आकस्मिक निधन से इस क्षेत्र का पटेल समाज आज भी उनकी कमी महसूस करता है।
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हालांकि 2012 में समाजवादी पार्टी ने दबंग छबि के अभय नारायण पटेल (पूर्व ब्लॉक प्रमुख) को सगड़ी Sagri से टिकट दिया और चुनाव में अभय नारायण पटेल ने अमर सिंह के बेहद करीबी रहे सीपू सिंह को हराकर विधानसभा पहुंचे, लेकिन 2017 चुनाव के ऐन मौके पर उनका टिकट काट दिया गया और यहां से विनम्र स्वभाव वाले पेशे से शिक्षक जयराम पटेल को टिकट दिया गया। 2017 के मोदी लहर में भी जयराम पटेल ने बीएसपी उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी और महज 5475 वोटों से पराजित हुए। खास बात यह है कि सपा सरकार में आजमगढ़ मंडल में कई नेताओं को राज्यमंत्री, एमएलसी व कई बोर्ड व निकायों में प्रमुख जिम्मेदारी दी गई, लेकिन यहां के पटेल नेताओं को जगह नहीं दी गई।
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घनश्याम पटेल:
बीजेपी के वरिष्ठ नेता घनश्याम पटेल Ghanshyam Patel (वर्तमान में किसान मोर्चा का प्रदेश उपाध्यक्ष) एक अच्छे वक्ता, वरिष्ठ अधिवक्ता, शिक्षाविद् व सामाजिक व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने 1996 में सगड़ी से इन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाया, जिसकी वजह से बरखूराम वर्मा हार गए। श्री पटेल को आजमगढ़ मंडल में बीजेपी का ओबीसी चेहरा के तौर पर जाना जाता है। बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर रमाकांत यादव के सांसद चुने जाने में आजमगढ़ के पटेलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इसमें भी घनश्याम पटेल का काफी योगदान रहा। लेकिन 2017 के चुनाव में घनश्याम पटेल को नजरअंदाज करते हुए शीर्ष नेतृत्व ने एक डमी कैंडिडेट को उतार दिया, जिसकी वजह से यह सीट बसपा के खाते में चली गई। कहा तो यहां तक जाता है कि बीएसपी उम्मीदवार वंदना सिंह को जीताने के लिए बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के कहने पर यहां से डमी कैंडिडेट उतारा गया। हालांकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के ऐन मौके पर घनश्याम पटेल Ghanshyam Patel को राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड का इंडिपेंडेंट निदेशक बनाकर पटेलों को साधने की कोशिश की।
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परिसीमन के बाद मऊ की मधुबन विधानसभा सीट पटेल बाहुल्य हो गई है। यहां पर 50 हजार से ज्यादा पटेल मतदाता हैं। 2017 से पहले मधुबन में बीजेपी की जमीन तैयार करने में पूर्वांचल के प्रख्यात सर्जन डॉ.एचएन पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन्होंने 2010 में बसपा उम्मीदवार और 2015 में सपा के ब्लॉक प्रमुख उम्मीदवार को हराया। इसके अलावा 2012 के विधानसभा चुनाव में सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 22513 वोट प्राप्त किए। 2015 में आजमगढ़ मंडल से एकमात्र भाजपा की झोली में इन्होंने ही ब्लॉक प्रमुख की सीट डाली थी, बावजूद इसके विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर डॉ. पटेल को नजरअंदाज करते हुए बसपा के पूर्व सांसद दारा सिंह चौहान को टिकट दिया गया। इसके अलावा पार्टी के ही कुछ लोगों के षडयंत्र की वजह से डॉ.पटेल की बहू की ब्लॉक प्रमुखी भी चली गई।
पेशे से सर्जन डॉ.पटेल की लोकप्रियता उनके मरीजों के प्रति प्रेम से है। पिछले 15 सालों में उन्होंने 5000 से ज्यादा मरीजों का नि:शुल्क ऑपरेशन किया है। हालांकि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से कुछ महीने पहले डॉ.पटेल भाजपा छोड़ पुन: सपा में शामिल हुए और विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर सगड़ी से सर्वाधिक वोटों के अंतर से विधायक निर्वाचित हुए।
एक सामान्य परिवार में पैदा हुए डॉ.हरेराम पटेल को बलिया में गरीबों, पिछड़ों व दलितों का हमदर्द के तौर पर जाना जाता है। चूंकि बलिया में नॉन यादव पिछड़ों की स्थिति भी दलितों से कम नहीं है। ऐसे में समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े इस समाज को एकजुट करने में डॉ.हरेराम पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। 2012 में बलिया सदर से बीजेपी टिकट के लिए सबसे ज्यादा दावेदारी डॉ.हरेराम पटेल की मानी जा रही थी। लेकिन डॉ.हरेराम पटेल की राह में रोड़ा के तौर पर खुद उनके ही स्वजातीय पूर्वांचल के एक बड़े भाजपा नेता आ गए। उन्होंने डॉ.हरेराम पटेल की बजाय दयाशंकर सिंह को टिकट देने की वकालत की। डॉ.हरेराम पटेल के साथ यह पत्रकार भी दिल्ली के यूपी सदन में उस नेता से मिलने गया था। मुलाकात के दौरान भाजपा नेता ने कहा था कि बलिया सदर में तुम्हारी काफी चर्चा है, उन्होंने सवाल किया कि बलिया सदर में पटेलों की संख्या कितनी है? साथ ही यह भी कहा कि वहां से हमारी पार्टी के युवा नेता दयाशंकर सिंह तैयारी कर रहा है। तत्पश्चात डॉ.हरेराम पटेल ने अपनी माताजी को जनता दल यूनाइटेड का प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में उतारा।
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बलिया के बेल्थरा रोड क्षेत्र के तिरनई निवासी प्रेम सिंह पटेल 30 साल पहले सेना से सेवानिवृति के बाद बीएसपी को मजबूत करने में अपना जीवन लगा दिया। जनपद में बसपा को शुरूआती दिनों में मजबूती प्रदान करने में प्रेम पटेल का सराहनीय योगदान रहा है। बसपा सुप्रीमो ने जनपद के कई ब्राह्मण व ठाकुर चेहरों को आगे बढ़ाने का कार्य किया, लेकिन पिछड़ा वर्ग से आने वाले प्रेम पटेल को नजरअंदाज किया।
बलिराम सिंह:
बलिया जनपद के बेल्थरारोड क्षेत्र अंतर्गत ग्राम बिड़हरा (ग्राम पंचायत- तिरनई खिजिरपुर) के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार बलिराम सिंह अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के मीडिया सलाहकार रह चुके हैं। बलिराम सिंह देश की राजधानी दिल्ली में कई महत्वपूर्ण अखबारों के लिए राजनीतिक रिपोर्टिंग कर चुके हैं। आपने केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के महत्वपूर्ण भाषणों पर आधारित ‘सर्वहारा वर्ग की आवाज-अनुप्रिया पटेल के ओजस्वी भाषणा’ नामक पुस्तक लिखा है। पुस्तक में अनुप्रिया पटेल के महत्वपूर्ण भाषणों के अलावा पार्टी के संस्थापक डॉ.सोनेलाल पटेल व उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल की जीवनी का भी उल्लेख किया गया है।
इसके अलावा बीबीसी हिन्दी के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा बलिया में किए गए विकास कार्य एवं जेपी (जय प्रकाश नारायण) के पैतृक गांव पर लिखे गए न्यूज में भी आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
तीनों जनपदों के पटेलों की स्थिति कमोबेश एक जैसी है। बलिया के बिड़हरा निवासी पेशे से अध्यापक लोरिक चंद सिंह कहते हैं कि आजमगढ़ मंडल में सर्वाधिक बाढ़ की समस्या सगड़ी क्षेत्र में है। इसकी वजह से पिछले 35 सालों में सगड़ी का पटेल समाज काफी तादाद में दिल्ली, मुंबई व अहमदाबाद की ओर रोजगार के लिए पलायन किया है। तीनों जनपदों में पटेल समाज छोटी जोत का किसान है। अधिकांश पटेलों के पास 4 से 5 बिगहा तक ही जमीन है। आर्थिक तौर पर कमजोर होने की वजह से इस समाज के अधिकांश युवा 10वीं-12वीं अथवा बीए पास करने के बाद रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों की ओर रूख करते हैं।
मऊ में पिछड़ों के नाम पर सभी पार्टियां राजभर व चौहान समाज को तरजीह तो देती हैं, लेकिन पटेलों को नजरअंदाज कर देती हैं। जबकि बलिया में बेल्थरा रोड विधानसभा को छोड़कर अमूमन सभी 6 विधानसभा क्षेत्रों में नॉन यादव पिछड़ों की स्थिति दलित समाज की तरह ही है। खेती व शिक्षा का अभाव की वजह से रोजगार के लिए अन्य राज्यों की ओर रूख करते हैं, जिसकी वजह से जनपद की राजनैतिक मामलों में उनकी हिस्सेदारी नगण्य है। इसके अलावा मऊ में कुर्मि व मल्ल-सैंथवार कुर्मियों के बीच की दूरियां व बलिया में अवधिया कुर्मि व जैसवारा कुर्मियों की दूरियां भी इनकी एकजुटता में बाधक रही है। हालांकि अब धीरे-धीरे जागरूकता आ रही है और लोग एकजुट हो रहे हैं।
क्या कहते हैं वरिष्ठ लोग:
दिल्ली कुर्मि क्षत्रिय महासभा के 10 साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे आजमगढ़ निवासी राजकुमार सिंह पटेल कहते हैं कि यह बहुत ही दु:ख की बात है कि आजमगढ़ मंडल के पटेलों को बीजेपी लगातार नजरअंदाज कर रही है। 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में यहां के पटेलों ने बीजेपी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, बावजूद इसके यहां के पटेलों को बीजेपी नेतृत्व ने नजरअंदाज किया। इसे लेकर समाज के लोगों में गहरी नाराजगी है।