देश में प्रति 10 लाख में से 120 लोग जीवन से निराश होकर मौत को लगा रहे हैं गले
यूपी80 न्यूज, नई दिल्ली
“देश में 2021 में 164033 लोगों ने आत्महत्या Suicide की, जो कि वर्ष 2022 के अपेक्षा 7.2 प्रतिशत ज्यादा था। आत्महत्या करने वालों में सर्वाधिक 37751 दिहाड़ी मजदूर Daily wage worker थे।“ यह भयावह तस्वीर राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी NCRB) की ताजा रिपोर्ट में आई है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 में पिछले साल 2020 की अपेक्षा आत्महत्या के 7.2 परसेंट ज्यादा मामले आए। वर्ष 2021 में प्रति 10 लाख लोगों पर 120 लोगों ने आत्महत्या की।
एनसीआरबी NCRB रिपोर्ट 2021 के मुताबिक आत्महत्या करने वालों में 37751 दिहाड़ी मजदूर थे। इनके अलावा 18803 स्वरोजगार, 11724 बेरोजगारों ने आत्महत्या की। 11431 लोग निजी क्षेत्र के उद्यमों में काम करने करने वाले थे एवं 1898 सरकारी कर्मचारियों ने आत्महत्या की।
आंकड़ों के मुताबिक आत्महत्या करने वाले सर्वाधिक 105242 लोगों की आय एक लाख रुपए से कम थी एवं 51812 लोगों की आय एक से पांच लाख के बीच थी।
45026 महिलाओं ने आत्महत्या की:
एनसीआरबी के मुताबिक 118979 पुरुषों ने आत्महत्या की। इनके अलावा 45026 महिलाओं ने आत्महत्या की।

5318 किसानों ने की आत्महत्या:
आंकड़ों के मुताबिक 5318 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें 5107 पुरुष एवं 211 महिलाएं शामिल थीं।
5563 खेतिहर मजदूरों ने की आत्महत्या:
5121 पुरुष
442 महिलाएं

वर्षवार आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा:
वर्ष – आत्महत्या
2021 – 164033
2020 – 153052
2019 – 13900
अदानी-अंबानी अमीर हुए, लेकिन कमेरों की कमर टूट गई: रमाशंकर राजभर
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एवं सलेमपुर से पूर्व सांसद रमाशंकर राजभर Ramashankar Rajbhar कहते हैं,

“कोरोना काल में पूरे देश के मजदूरों, गरीबों, मध्यम वर्ग, किसानों और व्यापारियों की कमर टूट गई, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूंजीपति मित्र अदानी और अंबानी और अमीर हो गए। इन दोनों का नाम दुनिया के अमीरों की सूची में शामिल हो गया। केंद्र की मोदी सरकार के एजेंडे में देश के गरीब, वंचित, किसान व व्यापारी नहीं हैं।”

आजमगढ़ Azamgarh की सगड़ी से सपा विधायक डॉ.एचएन सिंह पटेल Dr HN Singh Patel कहते हैं,
“केंद्र की मोदी सरकार की नीति है- गरीबों को समाप्त कर दो, गरीबी अपने आप समाप्त हो जाएगी। कोरोना काल में गरीब दिहाड़ी मजदूरों के रोजगार समाप्त हो गए, जिसकी वजह से गरीब मजदूर अपने परिवार का बोझ झेल नहीं सकें। यह अत्यंत ही भयावह स्थिति है।”