तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के, पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के। : रश्मिरथी
यूपी80 न्यूज, लखनऊ
जनसत्ता दल के मुखिया रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया Raja Bhaiya प्रतापगढ़ Pratapgarh के कुंडा Kunda सीट से 7वीं बार विधायक निर्वाचित हुए हैं। राजा भैया राजनीति के साथ-साथ साहित्य में भी गहरी रूचि रखते हैं। उन्हें राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर Ramdhari Singh Dinkar की प्रसिद्ध पुस्तक रश्मिरथी Rashmirathi कंठस्थ याद है। 20 साल पहले बसपा BSP सुप्रीमो व तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती Mayawati के शासनकाल में राजा भैया को 11 महीने तक पोटा के तहत जेल भेज दिया गया था। इस दौरान उन्होंने रश्मिरथी पुस्तक को कंठस्थ याद किया था और काल कोठरी में इन कविताओं को अक्सर पढ़ा करते थे।
रश्मिरथी की प्रमुख कविता:
‘जय हो’ जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,
जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को।
किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल,
सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल।
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
जिसके पिता सूर्य थे, माता कुन्ती सती कुमारी,
उसका पलना हुआ धार पर बहती हुई पिटारी।
सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,
निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्भुत वीर।
तन से समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी,
जाति-गोत्र का नहीं, शील का, पौरुष का अभिमानी।
ज्ञान-ध्यान, शस्त्रास्त्र, शास्त्र का कर सम्यक् अभ्यास,
अपने गुण का किया कर्ण ने आप स्वयं सुविकास।