‘न्यूयार्क डेली ट्रिब्यून’ में कार्ल मार्क्स ने भी वीरांगना ऊदा देवी पासी की तारीफ थी
लखनऊ, 16 नवंबर
प्रसिद्ध विचारक कार्ल मार्क्स ने 15 जुलाई 1857 को ‘न्यूयार्क डेली ट्रिब्यून’ में लिखा था कि यह पहली बार हुआ है कि भारत की देशी फौजों ने अपने यूरोपीय अफसरों को मार डाला। इस महाविद्रोह की पहली और सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उत्तर भारत की दलित दमित जनता ने अंग्रेजों से आमने-सामने लोहा लिया था।
आज ही के दिन 16 नवंबर 1857 को लखनऊ के सिकंदर बाग में वीरांगना ऊदा देवी ने अकेले अपने दम पर अंग्रेज सैनिकों व अफसरों को मार गिराया था। शहीद वीरांगना ऊदा देवी अवध के छठे बादशाह नवाब वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्य थी।
जब अवध के सेनापति एवं अतरौलिया रियासत के राजा महान स्वतंत्रता सेनानी राजा जयलाल सिंह के नेतृत्व में अवध की सेना ने अंग्रेजी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए थे। तो लखनऊ की अंग्रेजी फौज को सहयोग के लिए कानपुर से कर्नल कॉल्विन कैम्पवेल के नेतृत्व में अंग्रेजों का एक सैन्य दस्ता लखनऊ भेजा गया। जैसे ही दस्ता लखनऊ के पास सिकंदर बाग की तरफ बढ़ा। थकी-हारी अंग्रेजी सेना का यह दस्ता सिकंदर बाग पहुंच कर एक पीपल के पेड़ के नीचे आराम करने लगा। इसी दौरान उस पीपल के पेड़ से अंग्रेज सैनिकों पर गोलियां चलने लगी और देखते ही देखते 36 अंग्रेज सैनिक और अफसर मौत के घाट उतार दिए गए। इसी दौरान कर्नल कैम्पवेल ने निशाना साध कर पीपल के पेड़ पर गोली चलायी और एक महिला घायल होकर नीचे गिर पड़ी और वीर गति को प्राप्त हुई।
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वह महान महिला कोई और नहीं बल्कि महान वीरांगना ऊदा देवी पासी थीं। पेड़ से नीचे गिरने पर अंग्रेज कर्नल कैम्पवेल उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसने देखा कि काली वर्दी पहने जिस भारतीय सैनिक ने यह कार्य कर दिखाया वह पुरुष नहीं, बल्कि एक महिला है। कर्नल कैम्पवेल इतना अभिभूत हुआ कि उसने अपना हैट उतार कर वीरांगना ऊदा देवी को सैल्यूट मार कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
वीरांगना ऊदा देवी पासी की साहसिक कहानी लंदन के प्रमुख अखबार लंदन टाइम्स में भी प्रमुखता से छापी गयी। वीरांगना ऊदा देवी के शैर्य और पराक्रम से पूरे स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई गरिमा मिली।
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वीरांगना ऊदा देवी की याद में लिखी गई ये पंक्तियां हमें जरूर याद रखनी चाहिए:
गर्व हमें हैं ऊदा देवी पर, जिसने नया इतिहास रचाया।
भारत स्वतंत्र आंदोलन में अंग्रेजों का किया सफाया।।
दलित वर्ग में पैदा होकर, शौर्य पराक्रम का कार्य किया।
सदियों से जो मुक्त नहीं थे, सर झुका नहीं, पर कटा दिया।।