ब्राह्मण वर्ग Brahmins को विपक्ष अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा है तो बीजेपी BJP बैलेंस करने की कोशिश में जुटी है
यूपी80 न्यूज, नई दिल्ली
2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव UP assembly election की अभी से पक्ष व विपक्ष ने तैयारी शुरू कर दी है। वर्तमान हालात को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि 2022 के चुनाव में आरक्षण reservation मुख्य मुद्दा नहीं होगा, बल्कि कौन पार्टी ब्राह्मण वर्ग Brahmins को अपने पाले में करने में सफल होगी, इस पर सारा जोर होगा।
गैंगेस्टर विकास दूबे Vikas Dubey के एनकाउंटर Encounter में मारे जाने के बाद प्रदेश में ब्राह्मणों को अपने पाले में करने के लिए विपक्षी पार्टियों में होड़ मची है। प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर जानी जाने वाली समाजवादी पार्टी Samajwadi Party ने तो प्रदेश के हर जिला में परशुराम की प्रतिमा लगाने की घोषणा कर दी है। इसके अलावा लखनऊ में परशुराम Parashuram की 108 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित करने का भी एलान किया है।
वहीं दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो मायावती BSP Suprimo Mayawati भी ब्राह्मणों के जरिए एक बार फिर सत्ता में वापसी का सपना संजो रही हैं। विकास दुबे और उसके सहयोगियों के एनकाउंटर के बाद ब्राह्मण वर्ग को लेकर मायावती काफी मुखर हुईं और अब उन्होंने ऐलान किया कि सत्ता में आने पर सपा से भी ऊंची भगवान परशुराम Statue of Parashuram की प्रतिमा बसपा BSP स्थापित करवाएगी।
उधर, प्रदेश के किसी भी कोने में किसी भी ब्राह्मण के साथ कोई घटना घटित होती है तो कांग्रेस सोशल मीडिया से लेकर जमीन पर मुखर हो जाती है और आरोप लगाती है कि ब्राह्मणों पर सरकार अत्याचार कर रही है।
योगी सरकार में ब्राह्मण:
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बीजेपी तो शुरू से ब्राह्मण व बनियों की पार्टी रही है। मोदी युग में अन्य पिछड़ा वर्ग ने भी बढ़चढ़ कर बीजेपी को वोट दिया। लेकिन उत्तर प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपे जाने से ब्राह्मण वर्ग का एक खेमा नाराज है। हालांकि ब्राह्मणों को बैलेंस करने के लिए योगी कैबिनेट Yogi Cabinet में राजपूतों Rajput के बाद सबसे ज्यादा ब्राह्मण मंत्री हैं। प्रदेश का मुख्य सचिव Chief Secretary और पुलिस महानिदेशक DGP ब्राह्मण हैं। इसके अलावा सीएम के बेहद करीबी अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी भी ब्राह्मण हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी यूपी से डॉ.महेंद्र नाथ पांडेय Dr Mahendra Nath Pandey सहित कई महत्वपूर्ण लोगों को स्थान दिया गया है। कलराज मिश्रा को राजस्थान का गवर्नर बनाया गया तो दिवंगत लालजी टंडन को मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। इसके अलावा गोरखपुर Gorakhpur क्षेत्र से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री शिवप्रताप शुक्ल Shiv Pratap Shukla को राज्यसभा में बीजेपी का मुख्य सचेतक नियुक्त किया गया है। इनके अतिरिक्त अन्य कई महत्वपूर्ण पदों पर ब्राह्मण वर्ग की तैनाती की गई है। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस गोरखपुर क्षेत्र से आते हैं, उसके आसपास के संसदीय क्षेत्रों (गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया) से ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकट दिए गए, जबकि इन क्षेत्रों में सैंथवार कुर्मी व निषाद समाज की संख्या ज्यादा है। इनके अलावा बीजेपी संगठन में मंडल प्रभारी से लेकर प्रदेश व राष्ट्रीय टीम में भी ब्राह्मण वर्ग की संख्या सर्वाधिक है। बावजूद इसके ब्राह्मणों की नाराजगी को विपक्ष हवा दे रहा है।
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सामाजिक न्याय के सरोकार से दूर हुईं सपा-बसपा:
हालांकि सपा-बसपा का मुख्य आधार सामाजिक न्याय है। लेकिन अब ये दोनों पार्टियां अपने मूल एजेंडे से दूर होती जा रही हैं। हम ये भी कह सकते हैं कि ये अपने मूल एजेंडे से दूर हो गई हैं। इन दिनों ओबीसी आरक्षण को लेकर पिछड़ा वर्ग खासा नाराज है। चाहे क्रीमीलेयर संशोधन का मामला हो या अधिक कट ऑफ अथवा सहायक अध्यापक भर्ती का मामला। इन सभी जगहों पर पिछड़ा वर्ग खुद को ठगा महसूस कर रहा है। लेकिन इस मामले में अखिलेश यादव अथवा मायावती का ट्विट नहीं देखा गया।
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पिछड़ों की नाराजगी:
वैसे तो पिछड़ों को साधने के लिए अनेक मुद्दे हैं। सबसे प्रमुख मुद्दा आरक्षण है। अधिक कट ऑफ Cut Off लाने के बावजूद पिछड़ा वर्ग OBC के छात्रों की नियुक्ति सामान्य वर्ग में नहीं हो रही है। 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती मामले में भी पिछड़ों के अधिकारों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया गया। वर्तमान में क्रीमी लेयर संशोधन मामले को लेकर भी पिछड़ा वर्ग के प्रबुद्ध वर्ग में गहरी नाराजगी है। लेकिन इन मुद्दों से न तो अखिलेश यादव को कोई मतलब है और न ही मायावती को। ऐसा लगता है कि सपा-बसपा को इस बात का गुमान है कि दलित-पिछड़े तो इन्हें वोट देंगे ही, बस ब्राह्मणों को जोड़ लो।
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पत्रकार राकेश कुमार सिंह कहते हैं कि ये दोनों पार्टियां मुद्दाविहीन हो गई हैं। ये प्रदेश की मूल समस्या से दूर होती जा रही हैं। इन्हें न तो प्रदेश के विकास और किसानों की समस्याओं से कोई सरोकार है और न ही दलित-पिछड़ों की समस्याओं से कोई लेना-देना है।
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