ये बातें करते हैं सामाजिक न्याय की, फिर एक बैनर के नीचे क्यों नहीं आते?
बलिराम सिंह, पटना
पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा Upendra Kushwaha , पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी Jitan Ram Manjhi , सांसद चिराग पासवान Chirag Paswan , पूर्व सांसद पप्पू यादव Pappu Yadav , मुकेश सहनी Mukesh Sahani। अपनी-अपनी जाति में लोकप्रिय बिहार के इन नेताओं में एक समानता है। ये सभी नेता सामाजिक न्याय की वकालत करते हैं। समाज के वंचित तबका के विकास के लिए आरक्षण को मुख्य हथियार मानते हैं। इन नेताओं के निशाने पर अक्सर नीतीश कुमार Nitish Kumar और बीजेपी रहती है। हालांकि महागठबंधन में जगह नहीं मिलने पर अब इनके निशाने पर तेजस्वी यादव Tejashwi Yadav भी आ गए हैं। बावजूद इसके ये नेता एक बैनर के नीचे इकट्ठा होकर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं। इसके पीछे इन नेताओं की निजी महत्वाकांक्षायें बतायी जा रही है।
मजे की बात यह है कि इन सभी नेताओं में बिहार का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा प्रबल हो गई है। लेकिन इन की महात्वाकांक्षा की वजह से न तो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी RJD ) की अगुवाई वाला महागठबंधन इन्हें ज्यादा भाव दे रहा है और न ही जनता दल (यूनाइटेड) JDU व बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए ही इन्हें चारा डाल रही है। हालांकि इस मामले में जीतन राम मांझी अपवाद हैं। पिछले महीने मांझी महागठबंधन छोड़ एनडीए के पाले में आ गये। इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा भी महागठबंधन को बचाने के लिए पिछले महीने तक विष पीने की बात कर रहे थें, लेकिन बात नहीं बनी तो वह भी महागठबंधन छोड़ बसपा के साथ चुनाव मैदान में उतर गए हैं।
उपेंद्र कुशवाहा:

जेडीयू से अलग होकर उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी RLSP का गठन किया। पीएम नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री बने। लेकिन लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले इन्होंने एनडीए छोड़ दिया। लोकसभा चुनाव 2019 में इन्होंने महागठबंधन में चुनाव लड़ा, लेकिन करारी शिकस्त हुई। ये ज्यादा सीटें मांग रहे थें। ये बार-बार दबाव डाल रहे थें कि तेजस्वी यादव की बजाय किसी अन्य को सीएम फेस बनाया जाए। अप्रत्यक्ष तौर पर कुशवाहा खुद को प्रोजेक्ट कर रहे थें।
चिराग पासवान:

केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान अब लोक जनशक्ति पार्टी LJP के अध्यक्ष हैं। ये मुख्यमंत्री उम्मीदवार के साथ-साथ अन्य कई मांग कर रहे थें, लेकिन इनकी मांग पूरी न होने पर इन्होंने जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है। हालांकि इन्होंने बीजेपी प्रत्याशियों का समर्थन करने का भी फैसला किया है। इससे बिहार चुनाव दिलचस्प हो गया है।
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जीतन राम मांझी:

महादलित समाज से आने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी कुछ समय पहले तक महागठबंधन में थे, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर बात नहीं बनी तो इन्होंने एनडीए का दामन थाम लिया। पिछले कुछ महीनों से चिराग पासवान के लगातार हमलों को देखते हुए जेडीयू ने काफी पहले से जीतन राम मांझी को अपने पाले में लाने की रणनीति शुरू कर दी थी और इसमें जेडीयू सफल रही।
मुकेश सहनी:

अति पिछड़ी जाति से आने वाले मुकेश सहनी विकासशील इंसान पार्टी VIP के मुखिया हैं। ये मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाये जाने की मांग कर रहे थें। इसके अलावा ज्यादा सीटों की मांग कर रहे थें। लेकिन राजद द्वारा उनकी मांग पूरी करने में असमर्थता जताने पर इनका भी महागठबंधन से मोहभंग हो गया। फिलहाल ये अंदरखाने बीजेपी से बात कर रहे हैं, लेकिन यदि बात नहीं बनी तो मुकेश सहनी अकेले ही सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।
पप्पू यादव:

बिहार के युवाओं में लोकप्रिय जन अधिकार पार्टी JAP के मुखिया पप्पू यादव Pappu Yadav महागठबंधन से 50 सीटों के साथ मुख्यमंत्री पद देने की मांग कर रहे थे।
बड़ी पार्टियां क्यों नहीं दे रही हैं भाव:
चूंकि इन दलों के पिछले प्रदर्शन और हैसियत से बड़ी मांग के कारण महागठबंधन के नेतृत्व करने वाले दलों से तालमेल नहीं बैठ पाया। पिछले चुनावों में रालोसपा, वीआईपी, हम, जपा का प्रदर्शन खराब रहा। इनके अलावा चुनाव बाद जोड़-तोड़ की स्थिति में इन दलों से राजद को डर था, जिसकी वजह से राजद ने इन दलों की मांगों को ज्यादा भाव नहीं दिया।
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