ओमप्रकाश वाल्मीकि की कालजयी कविता- ठाकुर का कुंआ
यूपी80 न्यूज, लखनऊ
ओमप्रकाश वाल्मीकि Omprakash Valmiki जी ने हाशिए पर पड़े समाज की वेदना को अपनी कविताओं के माध्यम से मार्मिक वर्णन किया है। आपका जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के बरला Barala Village गांव में 30 जून 1950 को हुआ। आपका बचपन सामाजिक और आर्थिक कठिनाइयों में बीता। पढ़ाई के दौरान आपको अनेक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलना पड़ा। हिंदी में दलित साहित्य Dalit Literature के विकास में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने अपने वर्णन में जातीय उत्पीड़न Racial Oppression और भेदभाव का जीवंत उल्लेख किया है।
आपकी आत्मकथा ‘जूठन Joothan’ और ‘ठाकुर का कुंआ Thakur Ka Kuan’ काफी प्रसिद्ध हुई। जूठन 1999 में प्रकाशित हुई। आजादी के बाद दलित समाज के साथ हुए उत्पीड़न और अन्याय का जीवंत दस्तावेज है ‘जूठन’। देहरादून में 17 नवंबर 2013 को आपका निधन हो गया।
आपकी कालजयी रचना- ठाकुर का कुंआ
चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का ।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का ।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की ।
कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या ?
गाँव ?
शहर ?
देश ?