आधुनिक भारत के महान समाज सुधारक फुले ने किसानों व दलितों के उत्थान के लिए मशाल जलाया
नई दिल्ली, 28 नवंबर
“विद्या बिन मति गई,
मति बिन नीति गई,
नीति बिन गति गई,
गति बिन धन गया,
धन बिन शूद्र पतित हुए,
इतना घोर अनर्थ मात्र अविद्या के कारण ही हुआ।”
आधुनिक भारत के महान समाज सुधारक महामना ज्योतबा फुले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘शेतकर्याचा असोद’ (किसानों का दु:ख) नामक पुस्तक में किसानों और दलितों की दयनीय स्थिति को इन पंक्तियों के जरिए किया था। ज्योतिबा फुले ने केवल किसानों और शूद्रों के उद्धार के लिए ही महान कार्य नहीं किए, बल्कि उन्होंने महिलाओं को भी मुख्यधारा में लाने का महान कार्य किया और समाज में तार्किक एवं वैज्ञानिक विचारधारा की सोच विकसित करने के लिए क्रांतिकारी आंदोलन की शुरूआत की।
महाराष्ट्र के पूना शहर में 11 अप्रैल 1827 को ज्योतिबा फुले का जन्म गोविंदराव के घर हुआ। गोविंद राव फूलों का व्यापार करते थे। ज्योतिबा फुले को अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन की कहानी पढ़ने से प्रेरणा मिली और निर्भीक व साहसी तथा देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत हुए।
ब्राह्मण दोस्त की शादी में हुई बेइज्जती से आहत ज्योतिबा फुले ने समाज सुधार का प्रण लिया:
एक बार ज्योतिबा फुले अपने मित्र ब्राह्मण की शादी में गए। शादी में उनके पहुंचने पर ब्राह्मण मित्र के रिश्तेदार ने उनकी बहुत बेइज्जती की और अपमानित करके बारात से भगा दिया। इस घटना से ज्योतबा फुले बहुत आहत हुए और उन्होंने समाज सुधार का प्रण लेते हुए शूद्रों को शिक्षित करने का अभियान शुरू किया।
महिलाओं के उत्थान के लिए घर से शुरूआत:
महात्मा फुले ने पाया कि भारत में महिलाओं के शिक्षा की उपेक्षा की जाती है, जबकि शिक्षित महिला से ही परिवार भी शिक्षित होता है और परिवार की दशा सुधरती है। उस दौर में भारतीय महिलाओं को चप्पल पहनने एवं छाता लगाने सहित कई पाबंदियां थी। विधवा महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। महिलाओं के उत्थान के लिए ज्योतिबा फुले ने आंदोलन शुरू किया। उन्होंने खुद अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को शिक्षित किया।
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ज्योतिबा फुले के इस आंदोलन से उनके पिता बेहद खफा हुए और उन्होंने ज्योतिबा फुले एवं उनकी पत्नी माता सावित्री बाई फुले को घर से निकाल दिया। घर छोड़ने के बाद एक मित्र के सहयोग से ज्योतिबा फुले एवं उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले ने एक विद्यालय खोली। शीघ्र ही विद्यालय लोकप्रिय हो गया, विद्यालय में लड़कियों की संख्या तेजी से बढ़ गई।
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विधवा महिलाओं के लिए आश्रम की स्थापना:
उन दिनों विधवा महिलाओं की काफी दयनीय स्थिति थी। गर्भवती महिलाओं का भी निरादर किया जाता था। इन महिलाओं की देखरेख के लिए 1864 में ज्योतिबा फुले ने एक आश्रम खोला। यहां पर इन महिलाओं और उनके जन्मे बच्चों का पूरा ख्याल रखा जाता था।
किसानों की दयनीय स्थिति के लिए रानी विक्टोरिया को संदेश भेजा:
उन दिनों किसानों की हालत बहुत खराब थी, जिससे उनके बच्चे भी स्कूल जाने से वंचित रहते थे। ज्योतिबा ने अपनी पुस्तक ‘पोवदास’ के माध्यम से रानी विक्टोरिया को संदेश भेजा और निवेदन किया किया ब्राह्मणों से किसानों को बचाओ और किसानों व निम्न वर्ग के लोगों को भी क्लर्क व अध्यापक भर्ती करो, जिससे समाज का विकास हो।
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‘गुलामगिरी’ पुस्तक के माध्यम से ब्राह्मणवाद पर हमला:
ज्योतिबा फुले ने ‘गुलामगिरी’ नामक ऐतिहासिक पुस्तक के माध्यम से ब्राह्मणवाद पर करारा हमला किया। गुलामगिरी का अर्थ है दासता। पुस्तक के पहले ही भाग में उन्होंने ब्राह्मण धर्म के पर्दे के पीछे शीर्षक से दो घोषणा पत्र प्रकाशित किए। समाज में बदलाव के लिए उन्होंने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की और महाराष्ट्र में समाज सुधार आंदोलन चलाया।
लंबी बीमारी के बाद महामना ज्योतिबा फुले का निधन 28 नवंबर 1890 में हो गया। दलित समाज का उत्थान करने वाली इस मशाल के बुझने से यह आंदोलन धीमा पड़ गया। जिसको पुन: उनके शिष्य बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर ने बखूबी संभाला।
महामना ज्योतिबा फुले के इन्हीं महान कार्यों की वजह से पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने संसद में महामना ज्योतिबा फुले को भारत रत्न से नवाजे जाने की मांग की थीं।