सांसद पकौड़ी लाल कोल ने संसद में उठाया मुद्दा, कहा-कंपनियां रोजगार नहीं देती हैं और सरकारी क्रय केंद्र पर फसल भी नहीं बिकती
यूपी80 न्यूज, सोनभद्र/नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश के अधिकांश घरों में बिजली रिहंद परियोजना से आती है। रिहंद परियोजना के निर्माण के लिए आज से 60 साल पहले 106 गांवों के आदिवासियों और ग्रामीणों को विस्थापित किया गया, लेकिन आज भी ये विस्थापित आदिवासी एवं ग्रामीण अपने अधिकारों के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इन्हें आज भी रोजगार के लिए अन्य राज्यों में पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके अलावा इनके खेतों में पैदा हुई फसल भी सरकारी क्रय केंद्र पर नहीं खरीदी जाती है, जिसकी वजह से इन्हें अपनी फसल औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। राबर्ट्सगंज से अपना दल (एस) के सांसद पकौड़ी लाल कोल ने शनिवार को संसद में यह गंभीर मुद्दा उठाया।
पकौड़ी लाल कोल ने कहा कि सोनभद्र में भारत सरकार के अधीनस्थ कई परियोजनाएं जैसे एनसीएल, एनटीपीसी व अन्य परियोजनाएं संचालित हो रही हैं, लेकिन कोल इंडिया की पुनर्वास व पदस्थापन नीति के प्रावधानों के तहत नौकरी में स्थानीय लोगों का समायोजन नहीं किया जा रहा है। कुछ गांवों में मुआवजा भी नहीं मिला और विस्थापितों को नौकरी के मामले में नाममात्र की स्थिति है। इन कंपनियों में आउटसोर्सिंग सहित बाहरी लोगों की नियुक्ति की जा रही है, जिससे स्थानीय लोग भूखमरी और गरीबी की वजह से पलायन कर रहे हैं।
क्रय केंद्रों पर फसल बेचने का अधिकार नहीं:
पकौड़ी लाल कोल ने पिछले साल 12 अक्टूबर को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को लिखे पत्र में कहा कि 1960 में रिहंद जलाशय बांध के निर्माण के दौरान 106 गांवों के लोग विस्थापित हुए। उन्हें दुद्धी, म्योरपुर, बभनी, अनपरा, शक्तिनगर, डाला, चोपन आदि के विभिन्न गांवों में भूमि देकर बसाया गया, लेकिन वह भूमि आज भी गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट की भूमि खतौनी में दर्ज है। जिसकी वजह से ये ग्रामीण इस भूमि पर पैदा हुई फसल को सरकारी क्रय केंद्र पर बेच नहीं पाते हैं।
सरकारी लाभ भी नहीं मिलता:
इस खतौनी पर उन्हें बैंक से ऋृण, किसान दुर्घटना बीमा व किसी का जमानत भी नहीं करा पाते हैं और ना ही सरकार द्वारा र्को अन्य सुविधा मिल पाता है। अब तक विस्थापितों को कोई मालिकाना हक भी नहीं मिला।