देश में पहली बार पिछड़ों OBC गरीब सवर्णों Upper Castके लिए लागू किया आरक्षण Reservation ; कर्पूरी ठाकुर Karpuri Thakur ने चौ.चरण सिंह Ch. Charan Singh से कहा था- “जब तक बिहार के गरीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा?”
(24 जनवरी 1924-17 फरवरी 1988)
नई दिल्ली, 24 जनवरी
प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह एक बार बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर CM Karpuri Thakur के घर गए तो दरवाज़ा इतना छोटा था कि चौधरी चरण सिंह को सिर में चोट लग गई। चरण सिंह ने कहा, ‘कर्पूरी, इसको ज़रा ऊंचा करवाओ।’ जवाब में कर्पूरी ठाकुर ने कहा, ‘जब तक बिहार के ग़रीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा?’
1978 में बिहार का मुख्यमंत्री रहते हुए जब उन्होंने पिछड़ों के लिए सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण (महिलाओं के लिए तीन (इसमें सभी जातियों की महिलाएं शामिल थीं), ग़रीब सवर्णों के लिए तीन और पिछडों के लिए 20 फीसदी) लागू किया। हालांकि इस पहल के लिए उन्हें भद्दी गालियां सुननी पड़ी। उच्च वर्ग उन पर तंज कसते हुए कहते – कर कर्पूरी कर पूरा, छोड़ गद्दी, धर उस्तरा। यह तंज इसलिए कि कर्पूरी ठाकुर नाई समुदाय से आते थे।
जननायक कर्पूरी ठाकुर Jannayak Karpuri Thakur का जीवन संघर्षमय बीता, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वह सदैव समाज के अंतिम पंक्ति पर बैठे लोगों के बारे में चिंतित रहते थे। जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने निजी और सार्वजनिक जीवन, दोनों में आचरण के ऊंचे मानदंड स्थापित किए।
बचपन में जब कर्पूरी ठाकुर मैट्रिक में फर्स्ट डिविजन से पास हुए तो नाई का काम कर रहे उनके बाबूजी उन्हें गांव में एक उच्च वर्ग के व्यक्ति के पास लेकर गए और कहा, सरकार, ये मेरा बेटा है, फर्स्ट डिविजन से पास किया है। लेकिन उस आदमी ने शाबासी देने की बजाय अपनी टांगें मेज पर फैलाते हुए कहा, अच्छा फर्स्ट डिविजन से पास किए हो! मेरा पैर दबाओ। कर्पूरी ठाकुर के मन-मस्तिष्क पर इस घटना का गहरा असर पड़ा और वह सदैव कहा करते थें कि केवल आर्थिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ जाना, सरकारी नौकरी मिल जाने से समाज आगे नहीं बढ़ जाता है। जब तक कि उसे समाज में बराबरी का दर्जा न मिले।“
अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म की:
1967 में पहली बार बिहार का उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने मैट्रिक में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर दी। उनकी इस पहल से ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे भी उच्च शिक्षा ग्रहण करने लगे।
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खुली भर्ती की घोषणा करने पर सरकार चली गई:
1978 में कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने सिंचाई विभाग में 17000 पदों के लिए आवेदन मंगाए. हफ्ता भर बीतते-बीतते उनकी सरकार गिर गई. पहले बैक डोर से अस्थायी बहाली कर दी जाती थी और बाद में उसी को नियमित कर दिया जाता था।
1970 में 163 दिनों के कार्यकाल वाली सरकार में कर्पूरी ठाकुर ने कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए। आठवीं तक की शिक्षा मुफ़्त कर दी और उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्ज़ा दिया। सरकार ने पांच एकड़ तक की ज़मीन पर मालगुज़ारी खत्म कर दी।
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फटा कोट पहन कर आस्ट्रिया चले गए:
कर्पूरी ठाकुर 1952 में पहली बार विधायक बने। उन्हीं दिनों आस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उन्हें आस्ट्रिया जाना पड़ा। उनके पास कोट न होने की वजह से एक दोस्त से फटा कोट मांगकर विदेश गए। वहां यूगोस्लाविया के मुखिया मार्शल टीटो ने देखा कि कर्पूरी जी का कोट फटा हुआ है, तो उन्हें नया कोट गिफ़्ट किया।
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