अनुसूचित जाति के महज एक सचिव व अनुसूचित जनजाति के तीन
नई दिल्ली, 13 मार्च
ओबीसी समाज से आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के 89 सचिवों में से एक भी ओबीसी समाज का अधिकारी नहीं है। इस लिस्ट में केवल एक अधिकारी अनुसूचित जाति और तीन अधिकारी अनुसूचित जनजाति वर्ग से हैं। पिछले साल 10 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस के सांसद दिब्येंदू अधिकारी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी दी थी।
आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार के मंत्रालयों में कुल 93 अतिरिक्त सचिव हैं, लेकिन इनमें भी एक भी अधिकारी ओबीसी समाज से नहीं है, जबकि मात्र 6 अधिकारी एससी और 5 अधिकारी एसटी वर्ग से हैं।
अफसोस की बात ये है कि आजादी के 70 साल बाद भी केंद्र में अतिरिक्त सचिव के स्तर पर एससी वर्ग के केवल 6.45 परसेंट और एसटी वर्ग के 5.38 परसेंट अधिकारी हैं।
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कुल संयुक्त सचिव: 275
एससी वर्ग के संयुक्त सचिव: 13 (4.73)
एसटी वर्ग के संयुक्त सचिव : 09 (3.27)
ओबीसी वर्ग के संयुक्त सचिव: 19 (6.91)
बता दें कि देश में आजादी के बाद से ही दलित वर्ग को 15 परसेंट व आदिवासी वर्ग 7.5 परसेंट आरक्षण का प्रावधान है, जबकि 1993 में मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद ओबीसी के लिए 27.5 परसेंट आरक्षण प्रावधान किया गया।
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मात्र 40 ओबीसी वर्ग के निदेशक:
भारत सरकार में केंद्रीय कर्मचारी योजना के तहत 288 निदेशक नियुक्त किए गए। लेकिन इनमें से एससी वर्ग के 31 लोग (10.76), एसटी वर्ग के 12 लोग (4.17) और ओबीसी वर्ग के 40 लोग (13.86 परसेंट) ही हैं।
क्या कहते हैं सामाजिक न्याय के प्रहरी:
सामाजिक चिंतक एवं लखनऊ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता नंद किशोर पटेल कहते हैं कि इस आंकड़े से यह स्पष्ट होता है कि वंचितों के उत्थान के प्रति राष्ट्रीय पार्टियों की घोषणा केवल हवा-हवाई है। यह बड़ा ही आश्चर्य की बात है कि देश में जिस समाज की आबादी 85 परसेंट है, केंद्रीय मंत्रालय में उस समाज की उपस्थिति उंगलियों पर है।
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