प्रतापगढ़ के गोविंदपुर-परसठ गांव की घटना में पिछड़ी जाति की महिलाओं ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से की शिकायत
यूपी80 न्यूज, प्रतापगढ़
“घटना के दिन दबंगों के हमला के दौरान मैं घर के बाथरूम में घुस गई। दबंगों ने बाथरूम का दरवाजा तोड़ दिया और मेरे साथ छेड़छाड़ करने लगे। मेरे चिल्लाने पर मुझे मारने लगे और घसीटते हुए बाहर खींच लाए और बहुत मारे। उसके बाद कुछ और लोग घर में घुस के समान टीवी, अलामारी, पंखा, सब तोड़ डाले और लगभग 20 हजार रुपए नगर रखा था उसे भी उठा ले गए। इस घटना में पुलिस प्रशासन के साथ 40-50 लोग बाहरी आए थे।“ प्रतापगढ़ के गोविंदपुर गांव की निवासी 16 वर्षीय वंदना पटेल ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को अपनी शिकायत में दर्द भरी यह दास्तां बयां की है।
इसी तरह गोविंदपुर की ही रहने वाली अंजू वर्मा ने भी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग NCBC से शिकायत की है और अपनी शिकायत में दंबगों द्वारा छेड़छाड़, घर में लूटपाट एवं अंजू वर्मा तथा उसकी मां के साथ मारपीट की शिकायत की है। अंजू वर्मा ने कहा है कि घर का सामान तोड़ने व बिखेरने के अलावा बक्सा में रखा 70 हजार रुपए भी लूटकर ले गए। दबंगों के साथ पुलिस भी थी। दबंगों ने मुझे अंदर से घसीटते हुए पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस मुझे थाने ले गई।
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बता दें कि पिछड़ी जाति के किसान के खेत में दबंगों की गाय चरने और उन्हें हटाने को लेकर शुरू हुए विवाद बाद में तूल पकड़ लिया। पंचायत में मामले को सुलझाने के बावजूद दबंगों ने मामले को तूल दिया। पुलिस की मौजूदगी में गोविंदपुर-परसठ गांव की पिछड़ी जाति की महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों साथ-साथ युवाओं पर दबंगों ने कहर बरपाया। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस की मौजूदगी में दबंगों ने इस तरह का तांडव किया और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। इस मामले को लेकर बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) और कांग्रेस पार्टी ने पहले दिन से ही पीड़ितों के पक्ष में लगातार खड़ी दिखी। हालांकि इस घटना में एक पक्षीय कार्यवाही और घटना के 6 दिन बाद पिछड़ी जाति के लोगों की तरफ से एफआईआर दर्ज करना योगी सरकार की कार्यप्रणाली पर कई तरह के सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता डॉ.अनूप पटेल कहते हैं कि यह बड़ा ही दु:ख की बात है कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी इस मामले में पहले दिन से ही आवाज उठाती है। कांग्रेस पार्टी पहले दिन से ही घटना पर नजर रखे हुए थी। पार्टी नेतृत्व ने इस मामले में न केवल दो बार राज्य मुख्यालय से प्रेस विज्ञप्ति जारी की, बल्कि शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर एक प्रतिनिधिमंडल ने गांव में जाकर पीड़ितों से मुलाकात की। अन्य विपक्षी पार्टियां व सामाजिक संगठन इस मामले को लेकर लगातार पीड़ितों के पक्ष में आवाज उठा रहे थे, बावजूद इसके पुलिस प्रशासन दबंगों के पक्ष में काम कर रही थी। पुलिस द्वारा बार-बार पीड़ितों को धमकाने की शिकायतें आ रही थी। पीड़ित पक्ष के लोगों का 5 दिन बाद मेडिकल जांच कराया गया। ऐसे में सीधा सवाल उठता है कि क्या योगी सरकार पिछड़ों को केवल वोटबैंक समझती है। आखिर पीड़ितों की तरफ से एफआईआर दर्ज करने में 6 दिन का वक्त क्यों लगा ?
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