नई दिल्ली स्थित अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित ‘वाटर टाक’ में डीएम ने हिस्सा लिया
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर
बुंदेलखंड का बांदा जिला, जो कल तक गर्मियों में सूखा, जल संकट की त्रासदी झेल रहा था, अब वहीं बांदा जिला इस भीषण संकट को पार करते हुए पानी के मामले में आत्मनिर्भर होने की नई कहानी गढ़ रहा है और बुंदेलखंड सहित देश के अन्य सूखाग्रस्त जिलों में जल संकट से निजात पाने का रास्ता बता रहा है। इसका श्रेय बांदा के डीएम हीरालाल को जाता है, जिन्होंने बांदा के तालाबों को जीवित करने के लिए एक जनआंदोलन खड़ा कर दिया। शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित डॉ. अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में नेशनल वाटर मिशन की तरफ से आयोजित ‘वाटर टाक’ कार्यक्रम में डीएम हीरालाल ने देश के विभिन्न हिस्सों से आए विशेषज्ञों व अधिकारियों को जल संग्रहण की जानकारी दी।
वैसे तो हीरालाल को लोकसभा चुनाव के दौरान बांदा में पूर्व की अपेक्षा 10 परसेंट मतदान वृद्धि और प्लास्टिक मुक्त बांदा के लिए किए गए सराहनीय पहल भी काफी प्रशंसनीय है। लेकिन बांदा को जल संकट से उबारने के लिए इन्होंने जिस तरह से पहल की, वो वास्तव में आम जन सहित बुंदेलखंड में प्रवास करने वाले जीव-जंतुओं एवं जानवरों के जीवन के लिए भी बेहद लाभदायक है।
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मेरा खेत-मेरा तालाब:
डीएम हीरालाल ने जनपद में ‘मेरा खेत-मेरा तालाब’ अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत 2500 तालाबों की खुदाई की गई। जनपद के 469 गांवों में स्थित कुंओं और हैंड पम्पों के पानी इकट्ठा के लिए 2605 गड्ढे खोदे गए। एक जिला में इतने गड्ढे खुदवाने का यह रिकार्ड है। जनपद के महुई गांव में घरों के छतों पर गिरने वाले बारिश के पानी को सहेजने के लिए पाइप की व्यवस्था की गई और पानी को सीधे कुंओं और तालाबों तक पहुंचाया गया। लोगों को अपने खेतों के एक हिस्से में तालाब खुदवाने के लिए प्रेरित किया गया।
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इसके अलावा जनपद के 2500 सूखे कुंओं की तलहटी में जमी सिल्ट और गंदगी को हटाकर उन्हें फिर से पुनर्जीवित किया गया। डीएम ने इस बाबत हर गांव में जन चौपाल लगवाया। चौपाल में लोगों को जल संग्रहण का तरीका बताया गया।