‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान यहां स्थापित हुई समानांतर सरकार
लखनऊ, 13 अगस्त
वैसे तो देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, लेकिन देश के तीन स्थान ऐसे हैं, जो 1942 में ही ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान ब्रिटानिया हुकूमत को धत्ता बताते हुए स्वतंत्र हो गए। इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर स्थित बलिया, पश्चिम बंगाल में स्थित मिदनापुर जिले का तामलूक और महाराष्ट्र का सतारा जिला।
प्रसिद्ध इतिहासकार बिपिन चंद्र की प्रसिद्ध पुस्तक ‘भारत का स्वतंत्रता संग्राम’ में उल्लेख किया गया है कि गांधी जी द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश के कुछ हिस्सों में समानांतर सरकारों की स्थापना हुई।
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बलिया:
ब्रिटानिया हुकूमत के समानांतर पहली सरकार बलिया में बनी। इस सरकार को नेतृत्व गांधीवादी नेता चित्तू पांडेय ने किया। चित्तू पांडेय की सरकार ने कलेक्टर के सारे अधिकार छीन लिए और सभी गिरफ्तार कांग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया। हालांकि उनका प्रभुत्व ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। शीघ्र ही अंग्रेजी फौज वहां पहुंच गई।
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मिदनापुर (तामलूक):
बंगाल के मिदनापुर जिले के तामलूक नामक स्थान पर 17 दिसंबर 142 को ‘जातीय सरकार’ (राष्ट्रीय सरकार) का गठन किया गया। उसका अस्तित्व सितंबर 1944 तक रहा। ‘जातीय सरकार’ ने बड़े पैमाने पर तेजी से राहत का काम चलाया, स्कूलों को अनुदान दिए और एक सशस्त्र विद्युत वाहिनी का भी गठन किया। आपस में समझौता करने के लिए अदालतें बनाई गईं और धनी लोगों का अतिरिक्त धन गरीबों में बांट दिया गया। चूंकि तामलूक की भौगोलिक स्थिति कुछ अलग थी, इसलिए यहां समानांतर सरकार ज्यादा दिन चली।
सतारा:
भारत छोड़ो आंदोलन के शुरूआत से ही यह क्षेत्र काफी सक्रिय रहा था। आंदोलन के पहले चरण में सरकार के स्थानीय मुख्यालयों में हजारों लोगों का जुलूस निकाला गया। इसके बाद भितरघात, डाकघरों पर हमला, बैंकों की लूट, टेलीग्राफ के तारों को काट देना आदि का सिलसिला शुरू हुआ। यहां वाई.बी. चव्हाण सबसे महत्वपूर्ण नेता थे। यहां सबसे लंबे समय तक समानांतर सरकार चली।
यहां पर रॉबिनहुड शैली में बैंक डकैतियां डाली गईं। शराबबंदी लागू कर दी गई और गांधी विवाहों का आयोजन हुआ। जिनमें कोई तड़क-भड़क नहीं होती थी, और अछूतों को भी आमंत्रित किया जाता था। गांवों में पुस्तकालय खोले गए। औंध रियासत के राजा ने इसके लिए काफी मदद की थी। यह समानांतर सरकार 1945 तक कायम रही।