केके वर्मा, लखनऊ
लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इस बार का लोकसभा चुनाव महिला सशक्तिकरण का भी इम्तिहान ले रहा है। चुनाव ‘एनडीए’ बनाम ‘इंडिया’ है, लेकिन बीएसपी के उत्तर प्रदेश में एकला चलो की नीति अपनाने के कारण कहीं – कहीं त्रिकोणीय लड़ाई हो सकती है। फायदे में होगी, ये तो पता नहीं लेकिन सियासी समीकरण गड़बड़ाने की पोजीशन में तो बीएसपी आ सकती है।
एनडीए की मुख्य पार्टी बीजेपी की सरकार यूपी में भी है और केंद्र में भी है। भाजपा दावा कर रही है कि तीसरी बार मोदी पीएम बनेंगे। उत्तर प्रदेश के बीजेपी के लीडरान डंके की चोट पर सभी उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर जीत की गारंटी दे रहे हैं। बड़ा दल है और हुकूमत में है, यह सही है लेकिन मिशन 80 में थोड़ा शक तो हो रहा है, क्योंकि कुछ सीटें विपक्ष की गढ़ मानी जाती रही हैं, कुछ पर तो बीजेपी अभी तक पांव फैला नहीं सकी है। कहने को मंच से बीजेपी के एक दो बड़े नेता कह चुके हैं कि आजमगढ़ और रामपुर तो उपचुनाव में ले लिया। अमेठी पहले ही ले चुके हैं, अबकी बार मैनपुरी और रायबरेली भी लेंगे। नारी सशक्तिकरण की बात पीएम और सीएम दोनों करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधी आबादी को प्रोत्साहन दिया भी है।
समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल है। सरकार में भी रही है। महिलाओं को उसने भी मौका दिया है। आधा दर्जन महिला उम्मीदवार समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव में जोशोखरोश के साथ उतरी हैं। इन पर सियासी जानकारों की निगाहें टिकी हैं। आधा दर्जन महिला प्रत्याशियों में क्रमशः मैनपुरी से डिम्पल यादव, गोंडा से श्रेया वर्मा, गोरखपुर से काजल निषाद, उन्नाव से अन्नू टण्डन, हरदोई सुरक्षित से ऊषा वर्मा और इकरा हसन कैराना सीट से सपा की प्रत्याशी हैं। गोंडा से सपा प्रत्याशी श्रेया वर्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. बेनी प्रसाद वर्मा जो गोंडा से एमपी रह चुके हैं और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हैं, की पौत्री हैं। इनके पिता राकेश कुमार वर्मा समाजवादी पार्टी की सरकार में कारागार मंत्री रहे हैं। श्रेया वर्मा काफी मिलनसार और जन जन के बीच उपलब्ध रहने वाली युवा नेत्री हैं। ये समाजवादी पार्टी महिला विंग की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी है। गोंडा में बीजेपी के कैंडिडेट कीर्ति वर्धन सिंह को टक्कर दे रही हैं। घर घर पहुंचती हैं और कोई पोती तो कोई बेटी जैसा सम्मान दे रहा है। यहाँ जातिगत समीकरण भी उन्हें वजनदार बना सकते हैं। यहाँ टक्कर कांटे की है। आधी आबादी और सियासी समीकरण साथ दे गये तो रिजल्ट चौंकाने वाला होगा।
उधर, मैनपुरी तो समाजवादी पार्टी की परंपरागत सीट मानी जाती है। यहाँ से अभी तक मुलायम सिंह के परिवार का ही झंडा बुलंद रहा है। डिम्पल यादव वर्तमान में मैनपुरी से ही सांसद हैं। बड़ी नेता हैं। सपा चीफ और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की धर्मपत्नी हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि कोई दिखावा नहीं, सबके हित की बात सोचती हैं। इनके साथ इनके ससुर मुलायम सिंह यादव ‘नेताजी’ की विरासत जुड़ी है। नेताजी इलाके के लिए रहनुमा से कम नहीं थे। इस बार भी डिम्पल मैदान में हैं। यह सीट कोई तिलिस्म हो जाये तो बात अलग है, वर्ना डिम्पल का पलड़ा हल्का होना बहुत आसान नहीं। अभी तक तो यहां किसी और पार्टी को जीत नहीं मिली। बताते हैं कि बीजेपी एक मंत्री को उतारना चाहती थी, लेकिन उन्होंने शायद अनमनापन दिखाया है।
रही बात उन्नाव की तो साक्षी महाराज जहाँ हैट्रिक लगाने को बेताब हैं, वहीं सपा ने अन्नू टण्डन को उतारा है। अन्नू टण्डन भी उन्नाव से मेम्बर ऑफ पार्लियामेंट रह चुकी हैं। इस बार साइकिल पर सवार होकर दिल्ली जाना चाहती हैं। मिलनसार हैं, लोगों में हमदर्दी के लिये जानी जाती हैं। जीत हार मतदाता तय करेंगे, मगर लड़ाई बड़ी कांटे की होगी।हरदोई सुरक्षित सीट से सपा ने उषा वर्मा को उतारा है। वह हरदोई के पापुलर नेता रहे परमाई लाल की बहू हैं और दो बार सांसद रह चुकी हैं। उनका मुकाबला बीजेपी के जयप्रकाश रावत से है। जयप्रकाश रावत भी सांसद हैं। यहां भी जंग तगड़ी है।
सबसे अहम और हॉट सीट गोरखपुर को मान सकते हैं, क्योंकि यहाँ खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहते हैं। वे ही इस सीट का मुख्यमंत्री बनने से पहले प्रतिनिधित्व करते रहे। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी गच्चा खा गई थी। समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़े प्रवीण निषाद जीत कर संसद जा पहुँचे थे, ये बात और है कि वे पाला बदल भाजपाई बन गए। इनके पिता संजय निषाद योगी कैबिनेट में मंत्री हैं। इस बार गोरखपुर से वर्तमान सांसद और भोजपुरी फ़िल्म स्टार रवि किशन को भाजपा ने टिकट दिया है। उन्हें सीएम योगी आदित्यनाथ का ही सहारा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर पर खास ध्यान दिया है, काम हुए हैं, लेकिन रवि किशन के खाते में कुछ खास नहीं। रवि किशन के मुकाबले काजल निषाद साइकिल पर सवार हैं। ये मेयर के चुनाव में लोहा मनवा चुकी है, जीती नहीं, लेकिन बहुत ही शानदार प्रदर्शन किया था। सपा ने मौका दिया है।गोरखपुर में भी कड़ी लड़ाई होगी।
कैराना सीट पर भी कम रोमांचक मुकाबले के आसार नहीं है। यहाँ बीजेपी के प्रदीप कुमार को समाजवादी पार्टी की इकरा हसन टक्कर देने उतरी हैं। इनके राजनीतिक कौशल को 2022 में हुये विधानसभा चुनाव में लोगों ने देखा है। इनका ही प्रयास था कि अपने भाई को घर घर सम्पर्क कर विधानसभा पहुंचा दिया। काफी पढ़ी लिखी और सर्वसुलभ नेता मानी जाती हैं। अपनी बात तार्किक रूप से शालीनतापूर्वक लोगों के बीच रखती हैं। पार्टी नेतृत्व ने इन्हें मौका दिया है। प्रदीप कुमार और इकरा हसन की जंग पर इलाके की नजर है। ये आधा दर्जन सीटें ही कही मिशन 80 की राह में ब्रेकर न बन जाएं।महिला सशक्तिकरण के आसार बहुत हैं लेकिन निर्णायक वोटर हैं, भविष्य उनके हाथ है। चुनावी जंग रोमांचक होगी, नतीजे चौका भी सकते हैं।